ग्राफ्टेड पौधों को लगाते समय रूटस्टॉक की सही गहराई
अगर आप बागवानी के शौकीन हैं या व्यावसायिक तौर पर ग्राफ्टेड पौधे लगाते हैं, तो यह जानना बहुत ज़रूरी है कि पौधे की सफलता के लिए रूटस्टॉक (Rootstock) की सही गहराई और ग्राफ्टिंग की ऊंचाई क्यों महत्वपूर्ण है। अक्सर लोग इसे अनदेखा कर देते हैं, जिससे उनके पौधे ठीक से बढ़ नहीं पाते।
• ग्राफ्टिंग और रूटस्टॉक क्या है?
ग्राफ्टिंग एक ऐसी तकनीक है जिसमें दो अलग-अलग पौधों के हिस्सों को एक साथ जोड़कर एक नया पौधा बनाया जाता है। इसमें दो मुख्य भाग होते हैं:
* रूटस्टॉक (Rootstock): यह नीचे का हिस्सा होता है, जिसमें जड़ें और तने का निचला हिस्सा होता है। रूटस्टॉक को आमतौर पर उसकी मजबूत जड़ों, रोग प्रतिरोधक क्षमता, और मिट्टी में पोषण सोखने की बेहतर क्षमता के लिए चुना जाता है।
* सायन (Scion): यह ऊपर का हिस्सा होता है, जो वांछित फल, फूल या पत्तियों को उगाता है। इसे उसकी अच्छी गुणवत्ता, बेहतर स्वाद, और पैदावार के लिए चुना जाता है।
इन दोनों को जोड़ने पर, हमें एक ऐसा पौधा मिलता है जिसमें दोनों के सर्वोत्तम गुण होते हैं।
रूटस्टॉक को सही गहराई पर क्यों लगाना ज़रूरी है?
रूटस्टॉक को सही गहराई पर लगाना बहुत महत्वपूर्ण है। इसके मुख्य कारण हैं:
∆ ग्राफ्ट यूनियन को बचाना
ग्राफ्ट यूनियन (Graft Union) वह जगह होती है जहाँ रूटस्टॉक और सायन को जोड़ा जाता है। इसे मिट्टी के संपर्क से दूर रखना बहुत ज़रूरी है। अगर ग्राफ्ट यूनियन मिट्टी में दब जाती है, तो सायन, जो ऊपर वाला हिस्सा है, अपनी खुद की जड़ें विकसित करना शुरू कर सकता है। जब ऐसा होता है, तो वह अपने मूल गुणों के साथ बढ़ने लगता है, और रूटस्टॉक के मजबूत गुणों का लाभ नहीं मिल पाता। इससे ग्राफ्टिंग का पूरा उद्देश्य ही विफल हो जाता है।
∆ पौधे की स्थिरता
अगर आप पौधे को बहुत कम गहराई पर लगाते हैं, तो उसकी जड़ें मिट्टी से बाहर रह सकती हैं। इससे पौधा अस्थिर हो जाएगा और तेज़ हवा या पानी से आसानी से गिर सकता है। सही गहराई पर लगाने से जड़ें अच्छी तरह से मिट्टी में जम पाती हैं और पौधे को मज़बूती मिलती है।
∆ मिट्टी के रोग और कीटों से सुरक्षा
ग्राफ्टिंग का एक बड़ा फायदा यह भी है कि यह सायन को मिट्टी में मौजूद कुछ बीमारियों और कीटों से बचाता है। रूटस्टॉक को अक्सर इन समस्याओं के प्रति प्रतिरोधी (resistant) होने के लिए चुना जाता है। अगर ग्राफ्ट यूनियन मिट्टी में चली जाती है, तो सायन सीधे इन रोगों और कीटों के संपर्क में आ सकता है।
सही गहराई कैसे सुनिश्चित करें?
* पौधा लगाते समय, ध्यान रखें कि ग्राफ्ट यूनियन ज़मीन की सतह से कम से कम 2 से 3 इंच ऊपर रहे।
* पौधे को लगाते समय, जड़ें पूरी तरह से मिट्टी से ढक जानी चाहिए।
* पौधे के चारों ओर मिट्टी डालते समय, उसे हल्का दबाएं ताकि हवा की पॉकेट्स (air pockets) न रहें, लेकिन बहुत ज़्यादा न दबाएं, जिससे जड़ों को नुकसान हो।
• ग्राफ्टिंग (कलम बांधना) एक बहुत ही बहुमुखी तकनीक है, लेकिन यह सभी पौधों पर एक जैसी नहीं होती। पौधों के प्रकार, उनकी शारीरिक संरचना (anatomy), और उनके वानस्पतिक परिवार (botanical family) के आधार पर ग्राफ्टिंग की विधि और सफलता दर अलग-अलग होती है।
1. ग्राफ्टिंग की सफलता के लिए पौधों का संबंध (Relation)
ग्राफ्टिंग की सबसे महत्वपूर्ण शर्त यह है कि रूटस्टॉक और सायन एक-दूसरे से संबंधित होने चाहिए।
* एक ही प्रजाति (Species): सबसे अच्छी सफलता तब मिलती है जब रूटस्टॉक और सायन एक ही प्रजाति के हों।
* उदाहरण: एक आम के पेड़ की सायन को किसी दूसरे आम के पेड़ के रूटस्टॉक पर ग्राफ्ट करना।
* एक ही वंश (Genus): कई बार, ग्राफ्टिंग एक ही वंश (genus) के अलग-अलग प्रजातियों के बीच भी सफल होती है।
* उदाहरण: गुलाब के पौधों में, अलग-अलग किस्मों की ग्राफ्टिंग करना। नींबू, संतरा, और मौसमी जैसे फल एक ही वंश (citrus) के होते हैं, इसलिए उनकी ग्राफ्टिंग भी संभव होती है।
* एक ही परिवार (Family): कुछ मामलों में, एक ही वानस्पतिक परिवार (family) के पौधों के बीच भी ग्राफ्टिंग हो सकती है, लेकिन यह आमतौर पर कम सफल होती है और इसके लिए खास तकनीक की ज़रूरत होती है।
* उदाहरण: बैंगन, टमाटर और मिर्च एक ही परिवार (Solanaceae) के सदस्य हैं। इनकी ग्राफ्टिंग भी संभव है।
असंगतता (Incompatibility): अगर रूटस्टॉक और सायन का संबंध बहुत दूर का हो, तो ग्राफ्टिंग सफल नहीं होती। दोनों पौधे एक-दूसरे के साथ ठीक से जुड़ नहीं पाते, और ग्राफ्ट यूनियन में पोषण और पानी का प्रवाह रुक जाता है, जिससे अंततः पौधा मर जाता है।
2. ग्राफ्टिंग की विधियाँ और पौधों के प्रकार
पौधों के तने की मोटाई, उनकी लकड़ी की प्रकृति (नरम या कठोर), और उनका आकार ग्राफ्टिंग की विधि को निर्धारित करता है। कुछ प्रमुख विधियाँ और उनके उपयुक्त पौधे इस प्रकार हैं:
A. वेज ग्राफ्टिंग (Wedge Grafting / Cleft Grafting)
* विधि: इसमें रूटस्टॉक के तने के बीच में एक वी-आकार का चीरा लगाया जाता है और सायन को भी उसी आकार में काटकर उसमें फँसाया जाता है।
* उपयोगी पौधे: यह विधि उन पौधों के लिए सबसे उपयुक्त है जिनके तने मोटे होते हैं, जैसे कि आम, सेब, नाशपाती, और आड़ू।
B. व्हिप एंड टंग ग्राफ्टिंग (Whip and Tongue Grafting)
* विधि: यह एक अधिक जटिल विधि है जहाँ रूटस्टॉक और सायन दोनों पर तिरछे कट लगाए जाते हैं और फिर दोनों में एक "जीभ" (tongue) जैसा कट बनाकर उन्हें आपस में फँसाया जाता है। यह ग्राफ्ट यूनियन को बहुत मजबूती से जोड़ता है।
* उपयोगी पौधे: यह विधि छोटे तनों वाले पौधों के लिए अच्छी है, खासकर गुलाब और कुछ फलों के पेड़ जिनकी मोटाई समान होती है।
C. बडिंग (Budding)
* विधि: यह ग्राफ्टिंग का एक प्रकार है जिसमें सायन के पूरे तने के बजाय सिर्फ एक कली (bud) का इस्तेमाल किया जाता है। रूटस्टॉक पर एक टी-आकार (T-shape) का कट लगाकर कली को उसमें डाला जाता है।
* उपयोगी पौधे: यह तकनीक उन पौधों के लिए बहुत सफल है जो आसानी से कलियाँ बनाते हैं, जैसे कि गुलाब, नींबू, और कुछ अन्य फलों के पेड़।
D. अप्रोच ग्राफ्टिंग (Approach Grafting)
* विधि: इस विधि में, रूटस्टॉक और सायन दोनों पौधों को अपनी जड़ों के साथ ही रखा जाता है। दोनों के तनों का थोड़ा हिस्सा छीलकर उन्हें आपस में बाँध दिया जाता है। जब वे जुड़ जाते हैं, तो सायन को उसके मूल पौधे से अलग कर दिया जाता है।
* उपयोगी पौधे: यह विधि उन पौधों के लिए सुरक्षित मानी जाती है जिन्हें ग्राफ्ट करना मुश्किल होता है, जैसे कि लीची, कटहल और कुछ कठोर लकड़ी वाले पेड़।
3. लकड़ी की प्रकृति पर निर्भरता
* कठोर लकड़ी वाले पौधे (Hardwood Plants): आम, सेब, और बेर जैसे पेड़ों में तने की लकड़ी कठोर होती है। इन पर ग्राफ्टिंग के लिए अक्सर वेज ग्राफ्टिंग या व्हिप एंड टंग ग्राफ्टिंग जैसी मजबूत विधियों का उपयोग किया जाता है।
* नरम लकड़ी वाले पौधे (Softwood Plants): गुलाब जैसे पौधों में तने की लकड़ी नरम होती है। इनमें बडिंग या सॉफ्टवुड ग्राफ्टिंग का उपयोग किया जा सकता है।
निश्चित रूप से। ग्राफ्टिंग की ऊंचाई अलग-अलग पौधों के लिए अलग-अलग होती है, और यह कई महत्वपूर्ण कारकों पर निर्भर करती है। आइए इन कारकों को विस्तार से समझते हैं:
1. पौधे के प्रकार और उसकी विकास की आदत (Growth Habit)
* पेड़ों के लिए: आम, सेब, और अमरूद जैसे फलों के पेड़ों में ग्राफ्टिंग अक्सर जमीन से 6 इंच से 2 फीट (लगभग 15 से 60 सेमी) की ऊंचाई पर की जाती है। इस ऊंचाई पर ग्राफ्टिंग करने से पौधा एक मजबूत तना (trunk) विकसित कर पाता है।
* झाड़ियों (Shrubs) और फूलों के लिए: गुलाब जैसे पौधों में, ग्राफ्टिंग को अक्सर जमीन के बहुत करीब, लगभग 2-4 इंच (5-10 सेमी) की ऊंचाई पर किया जाता है। ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि गुलाब की झाड़ी जमीन से ही शाखाएं फैलाना शुरू कर दे और एक अच्छी, घनी झाड़ी का आकार ले सके।
2. रूटस्टॉक और सायन की मोटाई
* ग्राफ्टिंग के लिए, रूटस्टॉक और सायन दोनों की मोटाई का समान होना या बहुत करीब होना महत्वपूर्ण है। यदि दोनों की मोटाई बहुत अलग है, तो ग्राफ्ट यूनियन ठीक से नहीं जुड़ पाएगा।
* यदि रूटस्टॉक का तना पतला है, तो ग्राफ्टिंग नीचे की ओर की जाती है जहां तना थोड़ा मोटा होता है। यदि रूटस्टॉक का तना ऊपर से भी मोटा है, तो ग्राफ्टिंग ऊपर की ओर की जा सकती है।
3. ग्राफ्टिंग का उद्देश्य
* बौनापन (Dwarfing): कुछ रूटस्टॉक पौधों को बौना (dwarf) बनाने के लिए जाने जाते हैं। ऐसे में, ग्राफ्टिंग ऊंचाई को कम करके पौधे को और भी छोटा और अधिक कॉम्पैक्ट बनाया जा सकता है, जिससे गमलों में उगाना आसान हो जाता है।
* फलों की जल्दी पैदावार (Early Bearing): कम ऊंचाई पर ग्राफ्टिंग करने से पौधा जल्दी परिपक्व होता है और जल्दी फल देना शुरू कर देता है।
* रोग और कीट से बचाव (Disease & Pest Protection): यदि कोई विशेष बीमारी मिट्टी या जमीन के बहुत करीब के हिस्से से फैलती है, तो ग्राफ्टिंग को थोड़ी अधिक ऊंचाई पर किया जाता है ताकि सायन को उस रोग से बचाया जा सके।
* पानी के जमाव से बचाव (Waterlogging): कुछ पौधे पानी के जमाव के प्रति बहुत संवेदनशील होते हैं। यदि रूटस्टॉक इस स्थिति को सहन कर सकता है, लेकिन सायन नहीं, तो ग्राफ्टिंग को थोड़ी ऊंचाई पर किया जाता है, ताकि सायन वाला हिस्सा पानी के सीधे संपर्क में न आए।
4. ग्राफ्टिंग की विधि
अलग-अलग ग्राफ्टिंग विधियों के लिए अलग-अलग ऊंचाई की ज़रूरत होती है:
* बडिंग (Budding): यह विधि अक्सर जमीन के करीब, लगभग 6-12 इंच (15-30 सेमी) की ऊंचाई पर की जाती है।
* हेज ग्राफ्टिंग (Cleft Grafting) या वेज ग्राफ्टिंग (Wedge Grafting): यह विधि मोटे तनों वाले पेड़ों पर अक्सर अधिक ऊंचाई पर (1-2 फीट तक) की जाती है।
5. किसान और बागवान की पसंद
कई बार ग्राफ्टिंग की ऊंचाई किसान या बागवान की सुविधा पर भी निर्भर करती है। अगर वे जमीन के पास से कई शाखाएं चाहते हैं, तो वे ग्राफ्टिंग को नीचे की तरफ करेंगे। अगर वे एक सीधा और मजबूत मुख्य तना (single trunk) चाहते हैं, तो वे ग्राफ्टिंग को थोड़ा ऊपर करेंगे।
ग्राफ्टिंग की ऊंचाई: हर पौधे के लिए अलग क्यों?
ग्राफ्टिंग की ऊंचाई हर पौधे के लिए अलग होती है और यह कई बातों पर निर्भर करती है:
1. पौधे का प्रकार
* पेड़: आम, सेब जैसे फलों के पेड़ों में ग्राफ्टिंग आमतौर पर जमीन से 6 इंच से 2 फीट ऊपर की जाती है ताकि एक मजबूत तना बन सके।
* झाड़ियाँ और फूल: गुलाब जैसे पौधों में, ग्राफ्टिंग को जमीन के बहुत करीब (2-4 इंच) किया जाता है ताकि झाड़ी घनी और भरी-भरी लगे।
2. ग्राफ्टिंग का उद्देश्य
* पौधे को बौना बनाना: कुछ रूटस्टॉक पौधे को छोटा रखने में मदद करते हैं। अगर आप पौधे को और भी छोटा रखना चाहते हैं, तो ग्राफ्टिंग को कम ऊंचाई पर किया जाता है।
* जल्दी पैदावार: कम ऊंचाई पर ग्राफ्टिंग करने से पौधा जल्दी परिपक्व होता है और जल्दी फल देना शुरू करता है।
* बीमारी से बचाव: अगर कोई बीमारी जमीन से फैलती है, तो ग्राफ्टिंग को थोड़ी अधिक ऊंचाई पर किया जाता है ताकि सायन को सुरक्षित रखा जा सके।
ग्राफ्टिंग की सफलता के लिए क्या ज़रूरी है?
* संबंध: रूटस्टॉक और सायन का एक ही प्रजाति, वंश, या परिवार से होना ग्राफ्टिंग की सफलता के लिए ज़रूरी है।
* सही विधि: पौधों के तने की मोटाई और उनकी प्रकृति के अनुसार सही विधि (जैसे वेज ग्राफ्टिंग, बडिंग) का चुनाव करना महत्वपूर्ण है।
अपने पौधों के प्रकार और उद्देश्य के अनुसार, सही गहराई और ऊंचाई का चुनाव करके आप अपने पौधों को बेहतर तरीके से विकसित कर सकते हैं और उनसे अच्छी पैदावार पा सकते हैं।
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